But now we know the climate has changed since past few years and these kinds of things keep happening. I guess now we are also well prepared to handle any mishap due to heavy rains unlike what happened around 5 years back in Mumbai. I was in the final year of BE and was stuck up in college like several other Mumbaikars on 26/7.With my few friends , I left the college when the water levels were reaching up to 3 feet mark ,and slowly headed towards home. On that day many of my friends got stuck in trains, auto rickshaws, in their own vehicle, IN the bus and On the bus. Luckily we were the few to reach home that night but the journey from college to home was never as difficult as it had become that day. We all know those heavy rains resulted in flooding of many parts of Maharashtra in which many people lost their homes, loved ones and their lives. After that I had written this piece titled 'Mumbai Ki Barsaat' dedicated to 26/7, and tried to cover all the aspects of that tragedy in a light manner. Just sharing this with you guys and hoping these kinds of heavy rains never comes again.
मुंबई की बरसात !
बरसात का मौसम संग अपने खुशियाँ लाता है , मुरझाये हुए फूलों को फिर से खिलाता है !
बादलों से जब हलकी हलकी सी गिरे बूँदें , सर उठाये आकाश में रहे हम पलकें मूंदें !
बारिश का पानी ज़मीन पर उतरे कुछ ऐसे , तरसी आँखों से ख़ुशी के आंसू छलक जायें जैसे !
ऐसी ही बरसात के लिय हर साल हम तरसते हैं , पर आजकल ये आवारा बदल कुछ जम के बरसते हैं !
मुंबई की बरसात में मज़ा तो खूब आता है , तकलीफ तो तब होती है जब अपना ही घर डूब जाता है !
यहाँ पानी , वहां पानी , जहाँ देखो , तहां पानी , यह बरसात तो है आनी-जानी ,इसने कब हमारी है मानी ?
दादर से लेकर विरार तक पानी , कुर्ला में पड़ी इमरजेंसी लगानी ,
कलिना में अभी बिजली है लानी , अँधेरी है डूबा और डूबा कमानी !
BMC के झूठे दावों की पोल खुल गयी , बड़े बड़े खड्डों में जाने कितनी गाड़ियां फिसल गयी ,
वक़्त रहते कुछ काम न किया और बस आपके सेलफोन पे एक sms भेज दिया ,
की अगले अडतालीस घंटों में वर्षा बहुत भारी है ,घर से बहार न निकलें अगर अपनी जान प्यारी है !
यह देख हम भी कोशिश करके किसी सुरक्षित स्थान पर रुक गए ,
और देखते ही देखते बड़े बड़े वृक्ष इन्द्रदेव के आगे झुक गए !
२ दिन बाद बरसात रुकी और इन्द्रदेव का क्रोध कुछ नरमा गया ,
लेकिन ज़मीन पर इतना पानी देख खुद अरब सागर भी शर्मा गया !
बरसात से उस रात हुई तबाही का मंज़र शायद ही कोई भूल पाया होगा ,
न जाने कितनी मायूस आँखों ने रो कर , फिर सैलाब लाया होगा
बरसात का लुत्फ़ उठाने की जगह , अब हर कोई इससे डरता है ,
१० -१० फीट पानी जमा हो जाने से बेचारा आम आदमी ही मरता है !
तो कौन कहता है कि हमारे देश में पानी कम है , अपनों सी बिछड़ी कितनी आँखें आज भी ग़म से नम हैं ,
कौन यह आंसू पोछेगा , आखिर किस्में इतना दम है ,इन आंसुओं कि बहती धारा के गुनेहगार तो खुद हम हैं !
क्यूंकि अपनी गलती सुधारना हमे नहीं आता है , आर्थिक सुधार का खर्च , सही जगह खर्च नहीं हो पाता है ,
और देश का हर ठेकेदार येहीं रविय्या अपनाता है , जब तक अपना घर न डूबे हमारा क्या जाता है !
हमारा क्या जाता है !