इस मुखौटे के पीछे न जाने राज़ हैं कितने
कैसे सुलझा पाउँगा सवालात मैं इतने
सभी ने तेरी बस एक झलक ही पायी है
कहते हैं ज़मीं पर तू आसमां से उतर आई है
तेरी आँखों की गहराई माप जाऊं यह मेरे बस में नहीं
पर तेरे आंसू भी न पोंछ पाऊं इतना भी बेबस मैं नहीं
कोशिश मैं करता रहूँगा इस पहेली को बूझने की
अब तो आदत सी है मुझको उलझनों से जूझने की
तेरी तस्वीर को ज़हन में उतार के अब तुझे होने ना दूंगा गुम
परदे बेपर्दा करता रहूँगा जब तक जानूंगा ना कौन हो तुम ! कौन हो तुम!
कैसे सुलझा पाउँगा सवालात मैं इतने
सभी ने तेरी बस एक झलक ही पायी है
कहते हैं ज़मीं पर तू आसमां से उतर आई है
तेरी आँखों की गहराई माप जाऊं यह मेरे बस में नहीं
पर तेरे आंसू भी न पोंछ पाऊं इतना भी बेबस मैं नहीं
कोशिश मैं करता रहूँगा इस पहेली को बूझने की
अब तो आदत सी है मुझको उलझनों से जूझने की
तेरी तस्वीर को ज़हन में उतार के अब तुझे होने ना दूंगा गुम
परदे बेपर्दा करता रहूँगा जब तक जानूंगा ना कौन हो तुम ! कौन हो तुम!
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